राकेश कायस्थ की कलम से
गिरो मगर वैसे नहीं जैसे रुपया गिरता है
चढ़ो तो वैसे जैसे प्याज चढ़ता है
कहो मगर वैसे नहीं जैसे दिग्गी कहता है
चुप रहो तो वैसे जैसे पीएम रहता है
डरो मगर वैसे नहीं जैसे यूपीए डरता है
अड़ो तो वैसे जैसे खेमका अड़ता है
हांको मगर वैसे नहीं जैसे मोदी हांकता है
जागो तो वैसे जैसे एक मुल्क जागता है
